अहांक भीतर जे
बसल अइ
उदासी, पीड़ा
दुख आ अवसाद
तार क दिय' हमरा
हम सहेजि राखब
अपना हृदय में
सनेश जेना
लौटती डाक सं
हम पठा देब
भोरुका उजास
भगवती सीरक आशीष
आ आंचर त'रक सिनेह
रंगल ढौरल पौती मे ।
अहांक पूछै सं पहिने बता दी कि
एहि भयौन समयो मे
अस्पताल के संग संग खूजल छै
डाकखाना सेहो ।
- अरुण चन्द्र राय
UnknownMay 25, 2021 at 2:48 AM
ReplyDeleteबहुत नीक कविता। आशान्वित करै बला एहि दुरूह समय काल मे।
वर्तमान स्थिति के संज्ञान लैत, आस्था ओ विस्वास जगाबए बला। आनेक साधुवाद अहाँ के।
बहुत बहुत धन्यवाद। अपन परिचय सेहो दैतियई त नीक लगिता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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