Tuesday, May 25, 2021

लौटती डाक सं



अहांक भीतर जे


बसल अइ


उदासी, पीड़ा


दुख आ अवसाद


तार क दिय' हमरा


 


हम सहेजि राखब


अपना हृदय में


सनेश जेना


 


लौटती डाक सं


हम पठा देब


भोरुका उजास


भगवती सीरक आशीष


आ आंचर त'रक सिनेह


रंगल ढौरल पौती मे ।


 


अहांक पूछै सं पहिने बता दी कि


एहि भयौन समयो मे


अस्पताल के संग संग खूजल छै


डाकखाना सेहो । 


- अरुण चन्द्र  राय

Thursday, September 10, 2020

दुविधा

 


 

मतदाता सभ

दुविधा मे छथि कि

केकरा पक्ष में प्रकट करैथ

अप्पन मत

एक दिस भ गेल छै रोटी छोट

दोसर दिस छिना गेल छै काज

बाढि में दहि गेलई ओकर गाम

आ भाई शहर में झेल रहई छै बेकारी

कोन कारणे दई ओ अप्पन मत

दुविधा मे छथि !

 

जेकरा देने रहैथ  पचछुलका बेर

अप्पन मत

वैह चढ़ि के कुर्सी पर

बिसरि गेलै जे की की केनई रहई घोषणा

बिजली, पैन, स्कूल, किताब, चुलहा, गाछ , बिरिच्छ

काज, धंधा, दर-दवाई, हस्पताल

सब रहि गेलै खाली बहस के बात

बाद मे चर्चा मे रहई छै

हिन्दू-मुसलमान,

बड़का-छोटका,

अगड़ा-पिछड़ा

सीमान पर युद्ध

युद्ध के डर

किरकेट खिलाड़ी सभक कमाई

आ फिल्मी अभिनेत्री सभक बियाह-दान

 

वो दुविधा में छथि कि

कोन आधार पर तय करथि अप्पन मत

भाषणक आधार पर

वा झंडाक रंग पर

जातिक नाम पर

वा धर्म बेचबाक नाम पर

दंगा वा युद्ध वा भय के नाम पर

वा उन्माद पर ।

Tuesday, June 4, 2019

दैत्यक खूनल पोखरि


गामक बाहर 
एकटा पोखरि अछि 
बहुत विशाल 

लोक कहै छै 
एहि पोखरि के खुनने रहै दैत्य राता राति 
सूतल रहै जखन दुनिया भरि के मनुक्ख 
गहीर निन्न में 
दैत्य खुनैत रहै पोखरि

पोखरिक भीड पर दैत्य रोपलक 
आम,कटहर, जामुन, सीसो, बांस, केरा 
आ बनेलक घाट चारू दिस राता राति 
युद्ध करैत रहै जखन दुनिया भरि  के मनुक्ख 
दैत्य रोपित रहै तरहक तरहक गाछ

की छोट,  की पैघ 
की उंच,  की नीच 
की गरीब, की धनिक 
की मौगी,  की पुरुख 
सबहक छलै 
दैत्यक क खूनल पोखरि 


मरल हरल 
जनम सराध 
कातिक माघ स्नान 
सब होइत छलै 
एही पोखरि में 
दैत्यक खूनल पोखरि में

पहिने घाट बटि गेलई 
फेर सुखेलई आम जामुन कटहर 
सीसो के काटि लए गेलथि पैघ पैघ लोक 
बनेबाक लेल मन्दिरक खिड़की केबार 
राता राति

मुदा आब सुखा रहल अछि 
दैत्य बिला गेलई
मनुक्खक डरि सं 
आ मनुक्खक कृत्य सं 
सुखा रहल छै
गामक बाहरक विशाल पोखरि 

सुनैत रहिये दैत्य डेराउन होइत छै 
मुदा कि मनुक्खो सॅ बेसी !

Tuesday, March 28, 2017

फुटकर कविता

फुटकर कविता


१.

शब्द
आब नहि होइत अछि
हरियर
आ जे अछि हरियर
थीक की जीवन !

गामक सीमान पड़ ठाढ़
पीपरक गाछ पर
पीयर अमरबेलक हरियरी
देखै जेबाक भ' गेल अछि !


की अहूँ के लगैत अछि ज़े
सुन्नर आ' मोट भ' रहल अछि
पोथीक गत्ता
जखन कि
गूंजि रहल अछि
भीतरक पन्नाक खालीपन

३.

हमर बच्चा के
पसीन नहि
माय -बाबू  लेल
अलगे कोठली
पर्दा सँ  बंद केबाड

हुन पसीन छन्हि
खुजल खिड़की
जे हवा, पानि भीतर आबै
आ वो भरि नींन सूतथि
मायक-बाबूजी के कोरा में।

Friday, February 10, 2012

अर्थशास्त्र

कहल जाइत अछि जे 

अर्थशास्त्र
थीक एक टा विज्ञान
जाहि सॅ कएल जाइत अछि
उत्पादन, वितरण व 
खपत केर प्रबंधन 

संसाधनक इष्टतम उपयोग
लाभक संग
अछि 
एकर अंतिम उद्देश्य 

हटि गेल अछि
आमजन
अर्थशास्त्र के केंद्र स'
नबका परिभाषा में
मांग आ' आपूर्ति कए बीच 
संतुलन बैसेबाक कला सेहो थीक
अर्थशास्त्र
जखन कि
नाना प्रकारक
प्रलोभन दय कए
सृजित कएल जा रहल अछि मांग
आ' आपूर्ति भए रहल अछि
बाजारक शर्त पर