Friday, February 10, 2012

अर्थशास्त्र

कहल जाइत अछि जे 

अर्थशास्त्र
थीक एक टा विज्ञान
जाहि सॅ कएल जाइत अछि
उत्पादन, वितरण व 
खपत केर प्रबंधन 

संसाधनक इष्टतम उपयोग
लाभक संग
अछि 
एकर अंतिम उद्देश्य 

हटि गेल अछि
आमजन
अर्थशास्त्र के केंद्र स'
नबका परिभाषा में
मांग आ' आपूर्ति कए बीच 
संतुलन बैसेबाक कला सेहो थीक
अर्थशास्त्र
जखन कि
नाना प्रकारक
प्रलोभन दय कए
सृजित कएल जा रहल अछि मांग
आ' आपूर्ति भए रहल अछि
बाजारक शर्त पर




19 comments:

  1. बड नीक लागल अहांक लिखल ई क्षणिका सब।
    क्षणिका के मैथिली में कोनो शब्द दियऊ।
    छोटगर कविता ...?

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  2. ..एक सीख रहल छी... छोटगर कविता नीक विचार...

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  3. अउर ई छोटगर कविता लई बधाई

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  4. गरीबी की मार
    आंकड़ों के खेल में
    आम बेहाल!

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  5. नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
    आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
    मेरी एक नई मेरा बचपन
    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
    http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
    दिनेश पारीक

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  6. अरुण जी
    नमस्कार.
    अर्थशास्त्र के दामन से कितना सौन्दर्यबोध चुरा लाये आप.......वाह वाह !!!!
    इससे ज्यादा क्या कहूं. आभार

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  7. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति।

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  8. हटि गेल अछि
    आमजन
    अर्थशास्त्र के केंद्र स'
    नबका परिभाषा में


    vah vah..aam jan aam ki tarah choos liya gaya hai bhai.

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  9. arun ji,
    bhut neek lagal .ahina likhait rahi se hamar subhkamna.

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  10. मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए नया लेख
    http://tvstationlive.blogspot.in/2012/10/blog-post.html

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  11. अरुण जी, बढ़िया लागल क्षणिका.

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  12. बढ़िया क्षणिकाये....शुभ कामनाएं ...
    धन्यवाद....

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  13. अच्‍छी रचना।

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  14. अच्‍छी रचना।

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