Tuesday, March 28, 2017

फुटकर कविता

फुटकर कविता


१.

शब्द
आब नहि होइत अछि
हरियर
आ जे अछि हरियर
थीक की जीवन !

गामक सीमान पड़ ठाढ़
पीपरक गाछ पर
पीयर अमरबेलक हरियरी
देखै जेबाक भ' गेल अछि !


की अहूँ के लगैत अछि ज़े
सुन्नर आ' मोट भ' रहल अछि
पोथीक गत्ता
जखन कि
गूंजि रहल अछि
भीतरक पन्नाक खालीपन

३.

हमर बच्चा के
पसीन नहि
माय -बाबू  लेल
अलगे कोठली
पर्दा सँ  बंद केबाड

हुन पसीन छन्हि
खुजल खिड़की
जे हवा, पानि भीतर आबै
आ वो भरि नींन सूतथि
मायक-बाबूजी के कोरा में।